घुमंतुओं के पास समृद्ध ज्ञान परंपरा – पद्मश्री गिरीश प्रभुणे तीन दिवसीय शोध संगोष्ठी का हुआ समापन
मांडू के ऐतिहासिक चतुर्भुज श्रीराम मंदिर में जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी, संस्कृति परिषद मप्र शासन द्वारा ‘घुमन्तू समुदायों की भाषिक संपदा’ विषय पर चल रही तीन दिवसीय शोध संगोष्ठी मंगलवार को संपन्न हुई। संगोष्ठी का समापन जनजातीय एवं घुमन्तू समुदाय के बीच में वर्षों से कार्य कर रहे समाजसेवी पद्मश्री गिरीश प्रभुणे की अध्यक्षता में किया गया । अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए पद्मश्री प्रभुणे ने कहा कि हमारे देश में घुमंतु समाज के पास समृद्ध ज्ञान परंपरा है, भारत को यदि आगे लेकर जाना है तो हमें भारतीय दृष्टि से भाषाओं पर काम करना होगा। भीमबैटिका में हजारों साल पुराने चित्र इस बात का प्रमाण है कि संवाद की भाषा हमारे देश में कितनी प्राचीन है। वहां के चित्र आज भी बोलते हुए प्रतीत होते हैं। ध्यान से देखेंगे तो भारत की सभी भाषाओं की उच्चारण लिपि एक ही है, आशय अलग-अलग हैं। शोध के दौरान शब्दों के गहन एवं गूढ़ अर्थ को जानने एवं समझने की आवश्यकता है। निदेशक जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी डॉ. धर्मेंद्र पारे ने बताया कि संगोष्ठी में देशभर के विद्वानों ने तीन दिनों में विभिन्न विषयों पर शोध आलेख प्रस्तुत किए। उन्होंने आग्रह करते हुए कहा कि कागद की लेखी कम से कम हो और आँखन की देखी ज्यादा हो। हमारा उद्देश्य समाज के बीच में जाकर मौलिक कार्य को बढ़ावा देना है। इस अवसर पर अकादमी द्वारा संगोष्ठी पर केंद्रित पुस्तक का विमोचन भी किया गया। संगोष्ठी के पहले सत्र की अध्यक्षता डॉ. श्रीकृष्ण काकड़े (महाराष्ट्र ) ने की। इस सत्र में डॉ. किरण शर्मा, डॉ. अनीता सोनी, डॉ. लक्ष्मीकांत चंदेला, डॉ. खेमराज आर्य एवं श्री श्याम नायक ने भाषिक सम्पदा पर विचार व्यक्त किए। डॉ. श्रीकृष्ण काकड़े ने कहा कि भाषा समाज की विरासत एवं सम्पदा होती है। वह केवल संवाद का माध्यम ही नहीं, बल्कि संस्कृति संवाहक भी होती है। भाषा से ही आचार-विचार और संस्कृति पनपती है, उसमें लोकजीवन के सहजभाव अभिव्यक्त होते है। वर्तमान में घुमन्तू भाषाएं तेजी से लुप्त हो रही हैं, इसलिए आज इन घुमन्तू भाषाओं की शब्द समृद्धि के लिए भाषा वैज्ञानिक अनुसन्धान बहुत जरूरी है क्योंकि इसमें कई दुर्लभ चीजें और तथ्य सामने आएंगे जो आज तक संसार के सामने प्रकट नहीं हुए हैं। संचालन शुभम चौहान एवं ज्ञानेश चौबे ने किया। अंत में सभी प्रतिभागियों को प्रणाम पत्र एवं स्मृति चिन्ह प्रदान किए गए। प्रतिवेदन प्रो. देवेंद्र शुक्ला एवं श्री छोगालाल कुमरावत ने प्रस्तुत किया।