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“दास्तान-ए-अहिल्याबाई” कार्यक्रम में गूंजा लोकमाता की विरासत का स्वर, धारवासियों ने किया भावपूर्ण स्वागत दास्तानगोई मेंअहिल्या बाई के जीवन के विविध प्रसंगो को बखूबी से प्रस्तुत किया हिमांशु और प्रज्ञा ने…

लोकमाता अहिल्याबाई होलकर की 300वीं जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित किस्सागोई कार्यक्रम “दास्तान-ए-अहिल्याबाई” सोमवार 26 मई को पी.जी. कॉलेज ऑडिटोरियम, धार में भावुकता और गौरव के माहौल में संपन्न हुआ। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में श्रोताओं की उपस्थिति रही, जिन्होंने पूरे मनोयोग से लोकमाता के जीवन की प्रेरणादायक गाथा को सुना और सराहा। प्रसिद्ध दास्तानगो डॉ हिमांशु बाजपेयी और डॉ. प्रज्ञा शर्मा ने अपने प्रभावशाली शब्दों और भावपूर्ण प्रस्तुति से अहिल्याबाई होलकर के जीवन के अनछुए पहलुओं को मंच पर जीवंत कर दिया। उनकी शासन-व्यवस्था, सामाजिक न्याय, धार्मिक सहिष्णुता और जनकल्याण की भावना को दर्शाते किस्सों ने दर्शकों को गहराई से प्रभावित किया। कलाकार हिमांशु और प्रज्ञा ने अपने घंटे भर के मंचन मे देवी अहिल्या बाई के जीवन के विविध प्रसंगो को शब्दों की लड़ियों में पिरोकर एक पूरा चित्र ही सामने रख दिया। दास्तानगोई पेश करते हुए प्रज्ञा कहती है मराठा नरेश मल्हारराव होलकर ने अहिल्या को अपनी बहू बनाने का मन उसी दिन बना लिया था जब उसे 6 वर्ष की अवस्था में एक मन्दिर में आरती के दौरान देखा था। खांडे राव से विवाह के बाद राज परिवार की बहू बनी अहिल्या बाई ने अपने गुणों से होलकर परिवार का दिल जीत लिया। राज काज के तरीके सीखे, युद् करने की नीति सीखी, शस्त्र विद्या सीखी, लेकिन दुखो ने अहिल्या बाई का पीछा नहीं छोड़ा। कम उम्र में पति खांडेराव की मृत्यु हो गई। होलकरो की परम्परा के मुताबिक पति के संग पत्नी भी चिता में जलकर सती हो जाती।अहिल्या बाई भी सती के लिए तेयार थी, लेकिन ससुर मल्हारराव होलकर ने ऐसा होने नहीं दिया। वे जानते थे कि अहिल्या बाई राज्य पर आंच नही आने देगी और यह सब सच साबित हुआ। एक बार तो राधोबा ने चढ़ाई के लिए सेना को तैनात तक कर दिया, लेकिन अहिल्या बाई ने कूटनीति के तहत राधो बा के मंसूबे पर पानी फिर दिया। दास्तानगोई में मल्हार राव होलकर की मौत, अहिल्या बाई के पुत्र मालेराव की मौत,पुत्री मुक्ताबाई का सती होने की घटना का उल्लेख बड़ी मार्मिक तरीके से किया। इन घटनाओ ने अहिल्या बाई को झक जोरा अवश्य, लेकिन टूटने नही दिया। अपने शासन के दोरान अहिल्या बाई ने बड़ी से बड़ी विपत्ती का सामना किया और विपरीत परिस्थितियों मे भी धेर्य नहीं खोया। अहिल्या बाई कुशल शासिका होने के साथ शिव भक्त थी ।उन्होंने इंदौर सहित महेश्वर, काशी, पूना आदि स्थानों पर कुये, बावड़ी, धर्मशालाये, मन्दिर , किले आदि बनाये। उनके राज्य में कारीगरो, कलाकारों, शिल्पकारों आदि को राज्याश्रय प्राप्त था। वे प्रजापालक थी और कर्मनिष्ठ थी। कार्यक्रम की शुरुआत में केंद्रीय राज्यमंत्री सावित्री ठाकुर,कलेक्टर प्रियंक मिश्रा सहित अतिथियों ने दीप प्रज्वलन और लोकमाता की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। इसके पश्चात किस्सागोई का सिलसिला प्रारंभ हुआ, जिसमें अहिल्याबाई के जीवन संघर्ष, काशी में मंदिर निर्माण, मालवा में सुव्यवस्थित प्रशासन और उनके सामाजिक सरोकारों की झलक प्रस्तुत की गई। श्रोताओं ने बार-बार तालियों के साथ अपनी भावनाएं प्रकट कीं। कार्यक्रम के समापन पर आयोजकों ने दोनों वक्ताओं का सम्मान किया और कहा कि इस प्रस्तुति ने लोकमाता के विचारों को आज की पीढ़ी तक पहुंचाने का कार्य सफलतापूर्वक किया है।धारवासियों के लिए यह कार्यक्रम इतिहास और संस्कृति से जुड़ाव का एक सशक्त माध्यम बनकर सामने आया।श्री बाजपेयी ने कहा हमारे द्वारा अहिल्या बाई होलकर के जयंती वर्ष में उनके लोकहितकारी कार्यों को जन जन तक तक तक समूचे प्रदेश में पहुँचाने का कार्य करने का प्रयास किया जा रहा है।राज्यमंत्री श्रीमती ठाकुर कलेक्टर श्री मिश्रा और पूर्व विधायक करण सिंह पवार ने हिमांशु और प्रज्ञा को स्मृति चिन्ह दिए।

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