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बलराम जयंती एवं श्रीकृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी के पावन अवसर पर संस्‍कृति विभाग सम्‍पूर्ण प्रदेश में करेगा श्रीकृष्‍ण पर्व, 1000 से अधिक कलाकार भजन, कीर्तन, नृत्‍य, नाटिकाओं की देंगे प्रस्‍तुतियां बलरा

 मध्यप्रदेश केवल भारत का भौगोलिक हृदय नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहरों का केन्द्र भी है। यहाँ हर कोने में देवालय, तीर्थ और पौराणिक कथाओं से जुड़े स्थल मौजूद हैं। यह वह भूमि है जहां वनवास के दौरान भगवान श्रीराम के श्रीचरण पड़े और अधिकांश समय उन्‍होंने यहीं बिताया। इस ही भूमि पर भगवान श्रीकृष्‍ण को ज्ञान प्राप्‍त हुआ, जहां उन्‍होंने 14 विद्या और 64 कलाएं अपने गुरु सांदीपनि से सीखीं। 12 ज्‍योतिर्लिंगों में से दो प्रमुख महाकालेश्‍वर और ओंकारेश्‍वर ज्‍योतिर्लिंग भी यहीं विराजमान हैं।
      संचालक, संस्‍कृति श्री एन.पी. नामदेव ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण के पहले इस धरा पर श्री बलराम आभिरभूत हुए हैं। श्री बलराम के साथ परंपरा ने हल को जोड़कर कृषि की व्यवस्थित संस्कृति का सूत्रपात किया है। भगवान श्रीकृष्ण की गौ-पालक की भूमिका व्यवस्थित कृषि संस्कृति का विकास माना जाता है। उत्पादन तो पहले भी हो रहा था, लोग जीविकोपार्जन का कार्य कर रहे थे, लेकिन वह व्यवस्थित नहीं था। यानि कृषि का यह अर्थ है कि सबके लिए मूलभूत जरूरतें सभी की पूरी हो सकें, जिससे अंतरण की व्यवस्था बन सके। इस दृष्टि से भगवान श्रीकृष्ण के पूर्व बलराम का होना और उनकी प्रतीकात्मकता में उन्हें हलधर के रूप में निरूपित करना इस बात की प्रतीकात्मकता है, कि वे एक कृषि संस्कृति के जनक हैं। भगवान श्रीकृष्ण की जितनी भी लीलाएं हैं वे मूलतः पशुओं में लगने वाले रोग की लीलाएं हैं। भगवान श्रीकृष्ण उन लीलाओं के माध्यम से यह संकेत कर रहे हैं, कि जो पशु अकाल मृत्यु के कारक बन जाते थे बीमारियों से। उन बीमारियों के कारकों को उन्होंने नष्ट कर दिया। भगवान श्रीकृष्ण ने गोपाल के रूप में पशुओं के संरक्षण का कार्य किया है।
      उन्‍होंने बताया कि इसी बात को आधार मानते हुए बलराम जयंती एवं श्रीकृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी के अवसर पर प्रदेश के 3000 से अधिक श्रीकृष्ण मंदिरों में विविध धार्मिक अनुष्ठान और 100 से अधिक प्रमुख स्थलों पर 155 से अधिक सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होंगे। इन कार्यक्रमों में 1000 से अधिक कलाकार अपनी सुमधुर प्रस्तुतियों से श्रीकृष्ण भक्ति संगीत, भजन, कीर्तन करेंगे। श्री श्रीराम तिवारी ने बताया कि माननीय मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के मार्गदर्शन में आयोजित यह पर्व न केवल भक्ति और आध्यात्मिकता का उत्सव होगा, बल्कि मध्यप्रदेश की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को भी प्रदर्शित करेगा। मंदिरों में मटकी-फोड़, रास-लीला, भजन संध्या के साथ 3000 से अधिक मंदिरों में साज-सज्जा, श्रृंगार प्रतियोगिता का आयोजन महत्वपूर्ण होगा। मंदिरों में अनुपम श्रृंगार के लिए 1.50 लाख रुपये के तीन, 1.00 लाख रुपये के लिए पाँच और 51 हजार रुपये के सात पुरस्कारों का वितरण शामिल है।

अमझेरा और जानापाव में भी श्रीकृष्‍ण पर्व
     श्री नामदेव ने बताया कि जहां भगवान श्रीकृष्‍ण ने माता रुक्मिणी का हरण किया वह स्‍थान धार जिले का अमझेरा है। अमझेरा में 16 एवं 17 अगस्‍त, 2025 को सायं 7 बजे से दो दिवसीय श्रीकृष्‍ण पर्व का आयोजन संस्‍कृति विभाग द्वारा किया जा रहा है। इसमें पहले दिन श्री दिलीप संदेला, सागर द्वारा बधाई नृत्‍य एवं श्री चरणजीत सिंह, मुम्‍बई द्वारा भक्ति गायन की प्रस्‍तुति दी जायेगी । दूसरे दिन श्री आनंदीलाल भावेल, धार द्वारा भक्ति गायन और रंग त्रिवेणी, भोपाल द्वारा श्रीकृष्‍ण नृत्‍य नाटिका की प्रस्‍तुति दी जावेगी।

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