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भाषा केवल शब्द नहीं, वह जीवंत व्यवहार है – डॉ.कौशल* *भाषा और संस्कृति एक दूसरे की पूरक – प्रो.मौली कौशल*

जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी, संस्कृति परिषद मप्र शासन द्वारा ‘‍घुमन्‍तू समुदायों की भाषिक संपदा विषय पर मांडू में चल रही तीन दिवसीय शोध संगोष्ठी के दूसरे दिन विभिन्न विद्वानों ने अपने विचार व्यक्त किए। पहले सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ अध्येता एवं अहमदाबाद विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डॉ. मौली कौशल ने की।

           अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए प्रो.मौली कौशल ने कहा कि भाषा हमें इतिहास की ओर इंगित करती है,यही कारण है कि हर समुदाय के लोक साहित्य की अपनी विशेषताएं है। जब हम भाषा खोते है तो अपनी अस्मिता और पहचान भी खो देते है।  यह सवाल गहरा है कि भाषा का जन्म कहाँ से हुआ? भाषा के सम्बन्ध की पहली सीढ़ी लोरी है। घुमन्‍तूओं के साहित्य में सांस्कृतिक एवं जीवन मूल्य निहित है। उन्होंने बताया कि हिमाचल प्रदेश में निवासरत गद्दी समाज की भाषा में ऋग्वेद के कई उदाहरण मिलते है। भाषा और संस्कृति एक दूसरे के पूरक है , घुमंतु समुदाय की भाषा समृद्ध है। हमें शब्दों को समझने की आवश्यता है। संसार में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जिसे अपने शब्द सुनने में आनंद न आता हूं। इसी सत्र में डॉ. टीकमणि पटवारी ने बसदेवा समुदाय की भाषिक सम्पदा पर विचार व्यक्त करते हुए बताया कि बसदेवा का मुख्य कार्य गायिकी है, यह अपनी उत्पत्ति भगवान श्रीकृष्ण से जोड़ते है। इनका मानना है कि वसुदेव ही इनके कुलदेवता है। डॉ. निशाली पंचगाम ने बंजारा एवं डॉ. अलका यादव ने छत्तीसगढ़ की नट समुदाय की भाषा संस्कृति पर अपने विचार व्यक्त किए।
        द्वितीय सत्र में अध्यक्षता कर रहे छत्तीसगढ़ से आए डॉ. पीसी लाल यादव ने कहा कि देवारों का मूल निवास गोंड बाहुल्य क्षेत्र मंडला माना जाता है। देवार गीत उनकी सांस्कृतिक यात्रा के परिचायक और प्रबोधक है। देवारों के पास समृद्ध लोककथाएँ है। संगोष्ठी के विभिन्न सत्रों में डॉ. योग्यता भार्गव ,डॉ. उज्जवला समाधान डांगे, डॉ करन सिंह, डॉ. अनुपमा श्रीवास्तव, डॉ. नेत्रा रावणकर, डॉ. कमला नरवरिया ने भी अपनी बात रखी।

*शब्दों का अपना संसार होता है – पद्मश्री प्रो.अन्विता*
         अंत में पद्मश्री प्रो. अन्विता अब्बी ने विशेष रूप से देशभर से आए अध्येताओं को मार्गदर्शन देते हुए बताया कि शब्द की सम्पदा का अंदाजा तभी लगा सकते है जब शब्दों के बीच में बैठें। कई शब्द हमारी जिंदगी से बहुत दूर है। भाषा विज्ञान में व्याकरण बहुत ही सशक्त साधन है। हमें समझना होगा कि भाषा क्या है? भाषा के अंदर उस समुदाय की संस्कृति एवं पूरा दृष्टिकोण निहित होता है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि अंडमानी भाषा में चिड़ियों के जो नाम है, उनके 49 प्रतिशत शब्द ग्रीक और लेटिन में मिलते है। अंडमानी भाषा में पेड़, पौधों एवं पक्षियों के नाम है, वह सभी वैज्ञानिक आधार पर है। सत्रों का संचालन श्री ज्ञानेश चौबे, शुभम चौहान एवं प्रो. टीकमणि पटवारी ने किया।

*पद्मश्री गिरीश प्रभुणे की अध्यक्षता में होगा समापन*
        निदेशक जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी डॉ. धर्मेंद्र पारे ने बताया कि संगोष्ठी का समापन मंगलवार को दोपहर 12 बजे जनजातीय एवं घुमन्तू समुदाय के बीच में वर्षों से कार्य कर रहे समाजसेवी पद्मश्री गिरीश प्रभुणे की अध्यक्षता में होगा।

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