ऋषि दधीचि ने इस संसार को बचाने के लिए अपनी अस्थियों को दान किया था। ऐसे महान ऋषि जिस मंदिर में महादेव की पूजा करते थे वे बिल्वामृतेश्वर कहलाए। नर्मदा की दो धाराओं के बीच तीन किमी लंबे टापू पर बेंट के नाम से पहचाना जाता है। इस टापू पर 30 हजार वर्गफीट में श्री बिल्वामृतेश्वर महादेव का विशाल मंदिर है। मंदिर के पास ही महर्षि दधीचि और उनकी पत्नी की समाधि है। टापू के दक्षिण भाग में ही मंदिर में भगवान दत्तात्रेय एवं नर्मदा देवी की प्रतिमाएं स्थापित हैं। दधीचि ऋषि ने बेंट पर ही विश्व कल्याण के लिए बज्र बनाने अपनी अस्थियों का दान किया था। यहां पर पांडव भी अज्ञातवास में रुके थे। तभी से इस जगह का नाम धर्मराज युधिष्ठिर के नाम पर धर्मपुरी रखा गया। यहां पर स्थित बिल्वामृतेश्वर महादेव मंदिर रामायण कालीन है। यहां भगवान भोलेनाथ स्वयंभू शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। यहां पर प्रत्येक सावन सोमवार को बिल्वामृतेश्वर महादेव के दर्शन पूजन के लिए सैकड़ों श्रद्धालु पहुंचते हैं। इस मंदिर की मान्यता महाभारत काल से है कि यहां सभी श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी होती है। महाशिवरात्रि पर यहां विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। जिसमें हजारों श्रद्धालु बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं।