स्थलाकृति
धार जिला मध्य प्रदेश के दक्षिणी-पश्चिमी भाग में स्थित है | यह 22° 1′ 14″ तथा 23° 9′ 49″ उत्तरी अक्षांश और 74° 28′ 27″ तथा 75° 42’43” पूर्वी देशांतर के बीच स्थित है | इसका आकार अनियमित पंचभुज कोण के समान है | धार के उत्तर में रतलाम और उज्जैन जिले तथा दक्षिण और दक्षिण-पूर्व में पूर्वी निमाड़ है | धार के पूर्व और उत्तर पूर्व में इंदौर जिला तथा पश्चिम में झाबुआ जिला है | जिले का क्षेत्रफल 8,153 वर्ग कि.मी. है |
यह जिला तीन भू-आकृतिक भागों में फैला हुआ है । ये हैं – उत्तर में मालवा का पठार, मध्य क्षेत्र में विंध्याचल पर्वत माला और दक्षिणी सीमा के साथ-साथ फैली नर्मदा घाटी, तथापि दक्षिण-पश्चिमी भाग में पहाडियों के कारण घाटी पुन: अवरूद्ध हो गयी है ।
इस पर्वत श्रेणी का एक भाग जिले में सामान्यतया दक्षिण-पूर्व से उत्तर पश्चिम की ओर धन्वाकार मेखला के रूप में फैला हुआ है । यह पर्वत श्रेणी पहाड़ी क्षेत्र की 5 से 20 कि.मी. चौड़ी पट्टी के रूप में है । यह दक्षिण-पश्चिमी सीमा के पास दानी ग्राम के निकट लगभग 5 कि.मी. चौड़ी है । मध्य में मोगराबा के निकट यह लगभग 10 कि.मी. और आगे चलकर टांडा के पश्चिम में 20 कि.मी. चौड़ी है । बाघ और कुक्षी के पश्चिम में इसाई और हतनी घाटियों द्वारा यह पर्वत श्रेणी विश्रृंखल हो गई है ।
यह पर्वत श्रेणी दक्षिण-पश्चिम में नर्मदा के साथ-साथ पुन- आरंभ होती है । पिपहियावान (543-76 मीटर ऊँचा शिखर) का उत्तरी पर्वत स्कंध सरदारपुर तहसील और झाबुआ जिले के बीच सीमा बनाता है । यह गोमानपुरा (556-26 मीटर) के शिखर से लेकर झाबुआ बजरंगगढ तक फैला हुआ है । विंध्याचल की महान पर्वत श्रेणी आम तौर पर पश्चिम से पूर्व की ओर फैली हुई है और अपनी सम्पूर्ण लंबाईमें दक्षिण की ओर ढलवा है । धार में भी दक्षिणी ढलान स्पष्ट रूप से दिखाई देती है तथा ढलवा दीवार 400 से 600 मीटर ऊँची है । तथापि पश्चिम भाग में नर्मदा की सहायक नदियों के कारण उनके अग्रभाग का अपरदन हो गया है और लंबी और गहरी ऊँची-नीची घाटियां बन गई हैं । वस्तुत: गहरे दक्षिणी-पार्श्व की छोटी सरिताओं की तेज धाराओं ने उनके शिखरों को छिन-भिन्न कर दिया है । इसे परिणाम स्वरूप नर्मदाघाटी की अनेक सरिताओं के उदगम मालवा के पठार में दिखाई देते हैं । उच्चतम शिखरों की मुख्य रेखा, वर्तमान जल प्रवाहों के कारण दक्षिण की ओर छूट गई है । खिनिअम्बा (530.96 मी.),कोदी (541.93मी.), सुरेनी (572.41मी.) और धानखेड़ा (548.64मी.) जल विभाजक रेखा के दक्षिण में स्थित है ।
धार में विंध्याचल के पूर्वी और मध्य भागों में मुख्य पर्वत श्रेणी अविश्रृंखलित है, किन्तु पश्चिम में नदिका के गहरे प्रणालों के कारण यह विच्छेदित हो गई है । इस पर्वत श्रेणी का ढाल उत्तरकी ओर है, जो क्रमश- कम होता हुआ मालवा पठार से मिल गया है । उत्तर में मालवा के पठार पर अनेक पर्वत स्कंध भी फैले हुये है । किन्तु जिले के पश्चिमी अर्धांश में निरावृत कूटों की श्रृंखला दिखाई देती है जिनमें बीच-बीच में धारा सरणियां हैं,जो उत्तर से दक्षिण की ओर कुछ किलोमीटर तक बहती है । इस विशेषता के कारण यह पर्वत श्रेणी स्थानीय पर्वत श्रेणियों में इस प्रकार धुल मिल गई है कि उनमें विभेद करने के लिये मुख्य शिखरों की पंक्तियों का पता लगाना पड़ता है । जिले का सर्वोच्च शिखर मगरागा (751.03 मीटर) मध्य भाग में स्थित है । आगे चलकर पूर्व में नीलकंठ (702.26 मीटर) स्थित है और शिकारपुरा पहाड़ी की ऊँचाई 698.91 मीटर है । माण्डोगढ़ का प्रसिद्ध ऐतिहासिक किला माध्य समुद्र तल से मीटर सपाट शीर्ष पहाड़ी पर स्थित है ।
जिले का आधा उत्तरी हिस्सा मालवा के पठार में स्थित है । इसमें धार, सरदारपुर और बदनावर तहसीलों का उत्तरी भाग सम्मिलित है । इस प्रकार की औसत ऊँचाई, माध्य समुद्र तल से 500 मीटर है । यहां की भूमि तरंगित है, जिसमें दक्षिण से उत्तर की ओर घाटियों के बीच में ऊबड़-खाबड़ रूप से कुछ सपाट शीर्ष पहाडियां फैली हुई हैं । इसकी सामान्य ढाल उत्तर की ओर है । ये घाटियां विभिन्न मोटाई की काली कपासी मिट्टी से आच्छादित है और इसका उपयोग मुख्यत: कृषि के लिये किया जाता है । टीलों में या तो बजरी की बहुतायत पाई जाती है या बलुओं पत्थर की अवशायी चट्टानें बाहर निकली दिखाई देती है ।
इस पठार में जिले का लगभग 466,196.83 हेक्टेअर क्षेत्र आता है ।
विंध्य कगारों के नीचे नर्मदा की संकरी घाटी फैली हुई है, इसके अन्तर्गत जिले के दक्षिणी भाग में मनावर तहसील और कुक्षी तहसील का दक्षिणी-पूर्वी भाग आता है । इस घाटी की चौड़ाई 15 से 30 कि.मी. है । मनावर तहसील के उत्तरी भाग में इसकी ऊँचाई 275 मीटर है, जबकि दक्षिण-पश्चिम भाग में निसरपुर के निचले मैदान में 150 मीटर है । पूर्व की ओर खलघाट और बाकानेर की बीच यह घाटी तरंगित, चौड़ी अधिक निवृत्त और कछारी मिट्टी के कारण उपजाऊ है । पश्चिम की ओर बढ़ने पर इस घाटी में कई पहाडियां है, जिन्हें काटती हुई सरितायें, जिले की दक्षिणी सीमा के साथ-साथ आकर नर्मदा से मिलती है । इसके परिणाम स्वरूप सरिताओं के साथ-साथ जलोढ़क की कुछ भू-पट्टियां और खंड बन गये है ।