लोकल फॉर वोकल धार के रतन प्रजापत ने दीपावली पर बनाए 2.5 लाख मिट्टी के दीए
दीपावली का पर्व सिर्फ प्रकाश का नहीं, बल्कि अपने आत्मीयता और परंपरा का भी है। इसी क्रम में धार के रतन प्रजापत ने अपनी कला के माध्यम से लोकल फॉर वोकल की एक मिसाल पेश की है। 35 साल से मिट्टी के दीए बनाने का कार्य कर रहे रतन ने इस वर्ष दीपावली के अवसर पर 2 लाख 50 हजार दीए तैयार किए हैं। रतन प्रजापत बताते हैं कि वे दीपावली के चार महीने पहले से दीयों की तैयारी शुरू कर देते हैं। उनकी मेहनत और लगन का परिणाम है कि इस बार बनाए गए दीए न केवल धार, बल्कि आसपास के क्षेत्रों में भी लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हो गए हैं। उन्होंने कहा, “यह दीवाली हमारे लिए सिर्फ व्यवसाय नहीं, बल्कि हमारे सांस्कृतिक विरासत को संजोने का अवसर है।” रतन का मानना है कि मिट्टी के दीए पर्यावरण के लिए बेहतर हैं और इनके जलने से घरों में एक अलग ही रोशनी और सुख-शांति का अनुभव होता है। वे युवाओं को भी इस कला में प्रशिक्षित कर रहे हैं, ताकि यह परंपरा आगे बढ़ सके। रतन ने कई स्थानीय युवाओं को दीए बनाने का प्रशिक्षण देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में भी कदम उठाए हैं। इस दीपावली पर रतन के दीए न केवल घरों को रोशन करेंगे, बल्कि उन सभी लोगों के लिए एक प्रेरणा बनेंगे जो स्वदेशी उत्पादों का समर्थन करते हैं। उन्होंने कहा, “हमारा लक्ष्य है कि हम अपने देश की कला और संस्कृति को जीवित रखें। जब हम अपने हाथों से बने दीए जलाते हैं, तो हमें अपने मिट्टी से जुड़े होने का अहसास होता है।” धार के रतन प्रजापत की कहानी यह दर्शाती है कि लोकल फॉर वोकल का सिद्धांत कैसे हमारे पारंपरिक व्यवसायों को पुनर्जीवित कर सकता है। उनकी मेहनत और समर्पण न केवल उन्हें व्यक्तिगत पहचान दिला रहे हैं, बल्कि समग्र समुदाय को भी जोड़ रहे हैं। इस दीपावली, रतन के दीयों के साथ अपने घरों को सजाएं और एक नया संदेश फैलाएं—”अपने के लिए, अपने का!”